विश्वकर्मा पूजा कब है

विश्वकर्मा पूजा कब है पोस्ट के जरिये हम विश्वकर्मा पूजा के बारे में जानकारियाँ प्राप्त करेंगे। भगवान विश्वकर्मा इस संसार के शिल्पकार हैं। भगवान विश्वकर्मा के जन्मदिन को ही हम विश्वकर्मा पूजा के रूप में मानते हैं। उन्होंने हस्तिनापुर, द्वारका, इंद्रप्रस्थ जैसे नगरों का निर्माण किया है। इसमें घर के मशीनी यंत्रों जैसे कार,मोटरसाइकिल ,टीवी ,मोबाइल इत्यादि की पूजा की जाती है। लोहे और अन्य धातुओं से बनी चीजों की भी पूजा की जाती है। इस दिन लोग अपने घर के सभी सामानों को अच्छी तरह साफ करते हैं एवं अच्छे कपड़े पहन कर इसकी पूजा करते हैं।

ऐसी मान्यता है कि इस दिन यंत्रों की पूजा करने से ये जल्दी खराब नहीं होते। इस दिन कल-कारखानों में बड़ी धूम धाम से पूजा होती है। इस दिन कल-कारखानों में छुट्टी रहती है। तो आगे हम विश्वकर्मा पूजा कब है पोस्ट के जरिये इस पूजा से सम्बंधित पौराणिक कथाओं तथा अन्य तथ्यों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। हम यह भी जानेंगे कि विश्वकर्मा पूजा 2022  में कब है

विश्वकर्मा पूजा क्यों मनाते हैं

भगवान विश्वकर्मा
भगवान विश्वकर्मा

महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र बृहस्पति की बहन भुवना जो ब्रह्मविद्या जानने वाली थी वह अष्टम् वसु महर्षि प्रभास की पत्नी बनी और उससे सम्पूर्ण शिल्प विद्या के ज्ञाता प्रजापति विश्वकर्मा का जन्म हुआ। भगवान विश्वकर्मा केआविष्कार एवं निर्माण कार्यों का उल्लेख करें तो इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी, शिवमण्डलपुरी आदि का निर्माण इनके द्वारा किया गया है । पुष्पक विमान का निर्माण तथा सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोगी होनेवाले वस्तुएं भी इनके द्वारा ही बनाया गया है । कर्ण का कुण्डल, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, शंकर भगवान का त्रिशुल और यमराज का कालदण्ड इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने ही किया है ।

चार युगों में विश्वकर्मा ने कई नगर और भवनों का निर्माण किया। सबसे पहले सतयुग  में उन्होंने स्वर्गलोक निर्माण किया,त्रेता युग में लंका का निर्माण किया ,द्वापर युग में द्वारिका का निर्माण और कलियुग में हस्तिनापुर और इंद्रप्रस्थ का निर्माण किया। विश्वकर्मा ने ही जगन्नाथ मंदिर में स्थित भगवान कृष्ण,सुभद्रा और बलराम के मूर्तियों का निर्माण किया।

भगवान विश्वकर्मा अपने विज्ञान एवं शिल्प ज्ञान के कारण मनुष्यों में ही नहीं बल्कि देवताओं में भी पूजित हैं। उन्हें प्रथम इंजीनियर एवं श्रेष्ठ वैज्ञानिक की संज्ञा दी गयी है।

भगवान विश्वकर्मा के स्वरुप एवं अवतार

पुराणों में भगवान विश्वकर्मा के पांच अवतारों का वर्णन है :-

  1. विराट विश्वकर्मा
  2. धर्मवंशी विश्वकर्मा
  3. अंगीरावंशी विश्वकर्मा
  4. सुधन्वा विश्वकर्मा
  5. भृगुवंशी विश्वकर्मा

पुराणों में वर्णित है कि विराट स्वरुप विश्वकर्मा पंचमुख हैं। इन्हीं पांच मुखों से पांच अलग अलग वंशो की उत्पत्ति हुई है जिनके गोत्र अलग अलग हैं। पांचों वंश अलग अलग शिल्पों में पारंगत हैं :-

मनु विश्वकर्मा

# इनका सम्बन्ध सनाग गोत्र से है।

# इनके वंशज लोहकार होते हैं जो लोहे के वस्तु बनाने में पारंगत होते हैं।

मय विश्वकर्मा

# इनका सम्बन्ध सनातन गोत्र से है।

# इनके वंशज बढ़ई होते हैं जो लकड़ी के वस्तु बनाने में पारंगत होते हैं।

त्वष्ठा विश्वकर्मा

# इनका सम्बन्ध अहंभन गोत्र से है।

# इनके वंशज ताँबे के वस्तु बनाने में पारंगत होते हैं।

शिल्पी विश्वकर्मा

# इनका सम्बन्ध प्रत्न गोत्र से है।

# इनके वंशज मूर्तिकार होते हैं।

दैवज्ञा विश्वकर्मा

# इनका सम्बन्ध सुपर्ण गोत्र से होता है।

# इनके वंशज स्वर्णकार के रूप में जाने जाते हैं।

भगवान विश्वकर्मा से जुड़ी पौराणिक कथा

भगवान विश्वकर्मा से जुड़ी एक पौराणिक कथा है। एक बार माता पार्वती के जिद्द से परेशान भोलेनाथ ने सोने का महल बनाने का निर्णय लिया। माता पार्वती के लिए महल बनाने के लिए वे कुशल शिल्पकार की तलाश कर रहे थे। परन्तु उन्हें कोई ऐसा शिल्पकार नहीं मिल रहा था जो कि माता पार्वती के लिए अद्वितीय महल बना सके। इस कारण भोलेनाथ बहुत परेशान थे। इधर माता पार्वती भी नाराज बैठी थीं।

तभी किसी ने उन्हें भगवान विश्वकर्मा से महल बनवाने की सलाह दी। सलाह मानते हुए भोलेनाथ ने महल बनाने के जिम्मेदारी भगवान विश्वकर्मा को दे दी। भगवान् विश्वकर्मा कुशल शिल्पकार हैं उन्होंने बहुत सारे दैवीय कलाकृतियों का निर्माण किया है। उन्होंने माता पार्वती के लिए भी सोने का महल बनाया जो अलौकिक एवं अद्वितीय था। भोलेनाथ महल को देखकर बहुत खुश हुए। उन्होंने माता पार्वती को भी महल दिखाया। महल देखकर माता पार्वती मंत्रमुग्ध हो गयीं। वह बहुत खुश हुईं।

अब महल की पूजा के लिए श्रेष्ठ ब्राह्मण की जरूरत थी। उन्होंने महल की पूजा के लिए रावण को बुलवाया। रावण को महल देखकर लालच आ गया। उसने महल की पूजा की और दक्षिणा में वही महल माँग लिया। भगवान भोलेनाथ ने महल रावण को दे दिया। फिर भगवान भोलेनाथ ने माता पार्वती को समझाया कि धन-धान्य महल इत्यादि उनके पास नहीं रह सकता क्योंकि वे फ़क़ीर हैं। माता पार्वती को भी बात समझ में आ गयी और वे दोनों कैलाश पर्वत चले गए। रावण महल लेकर लंका चला गया।

विश्वकर्मा पूजा की विधि

ऐसी मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा का जन्म 17 सितम्बर को हुआ था। इस कारण इस दिन विश्वकर्मा पूजा के रूप में मनाया जाता है । विश्वकर्मा पूजा के दिन कल-कारखाने तथा मशीनों द्वारा उत्पादन करने वाले संस्थान बंद कर देना चाहिए। मशीनों की अच्छी तरह सफाई की जानी चाहिए। अगर मशीनों में कुछ खराबी है तो ठीक करना चाहिए। अब स्वामी को नहाकर अच्छी तरह तैयार हो जाना चाहिए। तत्पश्चात ब्राह्मण द्वारा पूजा किया जाना चाहिए। उसके बाद ब्राह्मण भोजन एवं गरीबों को दान दक्षिणा देना बहुत फलदायक होता है। व्यापार में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की होती है। कारखानों में विश्वकर्मा की मूर्ति स्थापित करके पूजा की जाती है। घरों में लोग मुख्यतः अपने कार, मोटरसाइकिल, साइकिल, टीवी, डीवीडी, इत्यादि की पूजा करते हैं।

श्री विश्वकर्मा जी की पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जैसे अक्षत, फूल, चंदन, धूप, अगरबत्ती, दही, रोली, सुपारी,रक्षा सूत्र, मिठाई, फल आदि की व्यवस्था कर लें। इसके बाद फैक्ट्री, वर्कशॉप, दुकान आदि के स्वामी को स्नान करके पूजा के आसन पर बैठना चाहिए। कलश को अष्टदल की बनी रंगोली जिस पर सतनजा हो रखें। फिर विधि-विधान से क्रमानुसार स्वयं या फिर अपने पंडितजी के माध्यम से पूजा करें। मशीनों में चन्दन लगाएं, अक्षत, फूल, फल, अगरबत्ती, धूप द्वारा पूजा करें। मशीन में रक्षा सूत्र बाँध दें। अब विश्वकर्मा भगवान के मन्त्र का उच्चारण करके पूजा करें।

विश्वकर्मा पूजा आरती एवं मंत्र

आरती

ॐ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा,
सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा.

आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया,
शिल्प शस्त्र का जग में, ज्ञान विकास किया, जय श्री विश्वकर्मा…

ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नहींं पाई,
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई.

रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना,
संकट मोचन बनकर, दूर दुख कीना, जय श्री विश्वकर्मा…

जब रथकार दम्पती, तुमरी टेर करी,
सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी.

एकानन चतुरानन, पंचानन राजे,
द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे, जय श्री विश्वकर्मा…

ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे,
मन दुविधा मिट जावे, अटल शांति पावे.

श्री विश्वकर्मा जी की आरती, जो कोई नर गावे,
कहत गजानन स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे, जय श्री विश्वकर्मा…

मंत्र

ॐ आधार शक्तपे नमः।।ॐ कुमयि नमः ।।ॐ अनन्तम नमः ।।ॐ पृथिव्यै नमः ।।

सारांश

विश्वकर्मा पूजा कब है पोस्ट के जरिये इस पूजा से सम्बंधित जानकारियाँ देने की कोशिश की गयी ।

आशा है की आपको यह पोस्ट पसंद आया होगा एवं आपको नयी जानकारियाँ भी मिली होंगी।

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