दुर्गा पूजा कब है

दुर्गा पूजा हिन्दुओं का सबसे बड़ा त्यौहार है। इस पोस्ट में हम जानेंगे कि 2022 में दुर्गा पूजा कब है। परन्तु उससे पहले हम यह जान लेते है कि दुर्गा पूजा मनाने के पीछे क्या कारण है? दुर्गा पूजा को मनाने की क्या विधि है ? इस पूजा से सम्बंधित पौराणिक कथा के बारे में भी हम विस्तार से जानेंगे। हम यह भी जानेंगे कि भारत के अलग अलग क्षेत्रों में इस पूजा को कैसे मनाया जाता है? विश्व के किन देशों में दुर्गा पूजा को मनाया जाता है?

माँ दुर्गा शक्ति की देवी है। बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में इस त्यौहार को मनाया जाता है। इस त्यौहार को 10 दिनों तक बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। अलग-अलग दिनों में माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। अंतिम दिन विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है। हिन्दू धर्म में इस पूजा का बहुत महत्व है। दुर्गा पूजा को प्रत्येक वर्ष कार्तिक महीने में मनाया जाता है। कार्तिक महीना अंग्रेजी तारीख के अनुसार सितम्बर-अक्टूबर महीने में आता है। इस वर्ष दुर्गा पूजा कब है इसकी चर्चा हम आगे करेंगे।

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माँ दुर्गा के 9 रूप

दुर्गा पूजा में माँ के 9 अलग अलग रूपों की पूजा की जाती। ये 9 रूप माँ के विभिन्न शक्तियों को प्रदर्शित करती है। माँ दुर्गा के 9 रूप हैं :-

  • शैलपुत्री
  • ब्रह्मचारिणी
  • चंद्रघण्टा
  • कूष्माण्डा
  • स्कन्दमाता
  • कात्यायनी
  • कालरात्रि
  • महागौरी
  • सिद्धिदात्री

शैलपुत्री

माँ दुर्गा का पहला रूप शैलपुत्री है। इसका शाब्दिक मतलब “हिमालय की पुत्री ” है। इस रूप में माँ की सवारी वृषभ है। हाथ में पुष्प तथा त्रिशूल धारण होता है। प्रथम पूजा में इसी रूप की पूजा की जाती है। माँ का यह स्वरुप चेतना के सर्वोच्च शिखर को प्रदर्शित करता है। प्रथम पूजा से भक्तजन उपवास करते हैं तथा श्रद्धा भाव से माँ का पूजन करते हैं। शाम में आरती भी की जाती है।

ब्रह्मचारिणी

ब्रह्मचारिणी माँ दुर्गा का द्वितीय रूप है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ है जो असीम तथा अनंत में विद्यमान है । ऊर्जा के अनंत स्वरुप को प्रदर्शित करती है ।इस रूप में माँ हाथ में कमंडल तथा जप की माला धारण किये रहती है। दुर्गा का यह रूप त्याग, तप, ब्रह्मचर्य,वैराग्य,सदाचार तथा संयम का प्रतीक है। श्रद्धाभाव से पूजन का यह दूसरा दिन होता है। उपवास के साथ माँ का पूजन किया जाता है। माँ की कृपा भक्तजनों पर सदा ही बनी रहती है। बुरे व्यवहारों को त्यागकर अच्छे विचारों को ग्रहण करने का यह दिन है।

चंद्रघण्टा

माँ दुर्गा का तृतीय रूप चंद्रघण्टा है।इस रूप में माँ की सवारी सिंह है। इस रूप में मस्तक पर घंटे के आकर का अर्धचंद्र होता है। यह रूप परम कल्याण तथा शांति प्रदान करने वाला होता है। हमारा मन चंचल होता है। यह विचारों के घोड़े में चढ़कर विचरता रहता है। माँ के इस रूप की आराधना करने से में शांत तथा एकाग्रचित होता है। तीसरे दिन माँ के भक्त परम श्रद्धा से माँ के इस रूप का पूजन करते हैं तथा उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

कूष्माण्डा

कूष्माण्डा माँ का चतुर्थ रूप है।कुष्माण्ड संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है कद्दू या गोलाकार वस्तु। माँ के इस रूप में ब्रह्माण्ड की शक्ति छोटे रूप में संचित होती है। दुर्गा के इस रूप की आराधना करने से रोग,दोष,भय दूर होते हैं। भक्तों को माँ सुख समृद्धि तथा उन्नति की और ले जाती है। चौथे दिन माँ के इस रूप की पूजा की जाती है।

स्कन्दमाता

दुर्गा माँ का पंचम रूप स्कन्दमाता है। भगवान कार्तिकेय का एक नाम स्कन्द है। भगवान कार्तिकेय के माता के रूप में माँ के इस रूप को जाना जाता है। माँ का यह रूप ज्ञानशक्ति तथा कर्मशक्ति का सूचक है। नवरात्र के पाँचवे दिन माँ के इस रूप की पूजा की जाती है। माँ के इस रूप को पूजने से ज्ञान तथा बुद्धि आती है। भक्तजन उपवास रखकर पूजा करते हैं। शाम में माता की आरती भी की जाती है।

कात्यायनी

माता का यह षष्ठ रूप है। इस स्वरुप की उपासना छठे दिन की जाती है। माता के इस रूप का पूजन करने से अर्थ,धर्म,काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। माँ का यह रूप रोग,शोक,संताप तथा भय को नष्ट करने वाला है। इस रूप में माँ की सवारी सिंह है। कहा जाता है कि महर्षि कात्यायन ने देवी पराम्बा की घोर तपस्या की। उनकी इच्छा थी की एक सुन्दर कन्या उनके घर जन्म ले। तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने कात्यायन ऋषि के यहाँ जन्म लिया। उन्हें कात्यायनी नाम से पुकारा गया।

इनकी आराधना करने से वैज्ञानिक तथा अन्य कठिन कार्य सिद्ध होते हैं। भक्तजनों को श्रद्धा भाव से देवी की पूजा करनी चाहिए। इस अवसर पर गरीबों तथा असहायों को दान दक्षिणा देने से पुण्य प्राप्त होता है।

कालरात्रि

कालरात्रि माता का सप्तम रूप है। जैसा कि नाम से ही विदित है माँ का यह रूप भयानक होता है। दैत्य दानव इत्यादि माता की इस रूप से भयभीत रहते है। इनका नाम लेने मात्र से वे भाग खड़े होते हैं। माँ इस रूप में मुंडमाला धारण किये हाथ में खडक धारण किये रहती हैं। इनका रंग घोर अंधकार के सामान काला होता है।भले ही माँ का रूप भयानक हो परन्तु भक्तजनों के लिए परम शुभदायी होता है। इस रूप की आराधना करने से बुरी शक्तिया कभी नहीं आती हैं।

दुर्गा के इस रूप कालरात्रि की उपासना करने से सिद्धि प्राप्त होती है। पूजा के सातवें दिन माता के इस रूप की पूजा श्रद्धा से करनी चाहिए। माँ की कृपा से जीवन में कभी अशांति नहीं आती है।

महागौरी

माँ दुर्गा की आठवीं शक्ति महागौरी है। महागौरी का वाहन वृषभ है । शुभफलदायिनी माता का वर्ण श्वेत होता है।श्वेत वर्ण होने के कारन इन्हे श्वेताम्बरा भी कहा जाता है। चार भुजाओं वाली माता के हाथ में त्रिशूल होता है।कहा जाता है कि श्रद्धापूर्वक पूजन करने से ये सुहागनों के सुहाग की रक्षा स्वयं करतीं हैं। पूजा के आठवें दिन श्रद्धा भाव से माता का पूजन करना चाहिए। माता अमोघ फलदायिनी हैं।

सिद्धिदात्री

माता का नवम रूप सिद्धिदात्री है। इनका पूजन करने से सभी प्रकार की सिद्धि प्राप्त होती है।इस देवी के दाहिनी तरफ नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा तथा बायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल का पुष्प है।विधि-विधान से नौंवे दिन इस देवी की उपासना करने से सिद्धियां प्राप्त होती हैं। इनकी साधना करने से लौकिक और परलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है।

नवें दिन माँ के शरण में जाकर पूरी भक्ति से इनकी पूजा करनी चाहिए। इनका पूजन करने से परम सिद्ध जीवन प्राप्त होता है। मनुष्य अपनी प्रजाति में श्रेष्ठता को प्राप्त होता है।

दुर्गा पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा

Maa Durga
Maa Durga

महिषासुर वध की कथा

इस कथा के अनुसार दैत्य महिषासुर ने वर्षों तक कठिन तपस्या की। इस कठिन तपस्या से उसने भगवान ब्रह्मा को खुश कर लिया। अंततः भगवान ब्रह्मा महिषासुर के सामने प्रगट हुए। महिषासुर ने भगवान से अजेय होने का वरदान माँगा। ब्रह्मा ने उसे तथास्तु कहा और अंतर्ध्यान हो गए। अब वह भगवान द्वारा दिए गए वरदान का गलत इस्तेमाल करने लगा। सारे देवता उससे परेशान हो गये तथा बहुत भयभीत रहने लगे। स्वर्गलोक का आसन डगमगाने लगा।

वरदान केकारण कोई भी देवता महिषासुर को परास्त नहीं कर पा रहे थे।अंततः सभी देवताओं ने अपनी अपनी शक्तियाँ प्रदान की तथा शक्तिस्वरूपा माँ दुर्गा को स्थापित किया। देवताओं ने अस्त्र शस्त्रों से माँ को सुसज्जित किया। माँ के विकराल रूप तथा गर्जना से तीनों लोक काँप उठा। महिषासुर और माँ दुर्गा के बीच नौ दिनों तक भयानक युद्ध चला। अंत में माँ ने महिषासुर का वध कर डाला। सारे देवताओं ने रहत की साँस ली।

रक्तबीज की कथा

रक्तबीज नामक असुर को ब्रह्माजी से यह वरदान प्राप्त था कि अगर उसके रक्त के बूँद धरती में गिरेंगे तो वह असुर का रूप धारन कर लेगा। इस वरदान के कारण कोई उसे पराजित नहीं कर पाता था। दरअसल रक्तबीज पूर्व जन्म में असुर सम्राट रंभ था जिसको इन्द्र ने तपस्या करते वक्त धोखे से मार दिया था। रक्तबीज के रूप में उसने फिर से घोर तपस्या की और यह वरदान प्राप्त किया कि उसके शरीर की एक भी बूंद अगर धरती पर गिरती है तो उससे एक और रक्तबीज उत्पन्न होगा।

दैत्य रक्तबीज ने स्वर्गलोक में हमला कर दिया। देवताओं में हाहाकार मच गया। रक्तबीज ने एक एक कर सारे देवताओं को पराजित कर दिया। तब सारे देवता महादेव के शरण में गए। तब महादेव के कहने पर माता दुर्गा ने कालरात्रि के रूप में रक्तबीज से युद्ध किया। माता काली रक्त के बून्द धरती में गिरने से पहले ही उसे पी जाती थी। इस तरह उन्होंने रक्तबीज का अंत किया।

शुंभ-निशुंभ की कथा

शुंभ-निशुंभ नामक दो दानव कठोर तपस्या कर ब्रह्माजी से यह वरदान प्राप्त किया था कि कोई भी पुरुष, देवता, राक्षस, दानव, असुर उनका वध न कर पाए। वे स्त्री को कमजोर समझते थे और उन्हें यह घमंड था कि कोई स्त्री उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। अपने घमंड में चूर शुंभ-निशुंभ तीनों लोकों में अत्याचार की सीमा को पार कर चुके थे। सभी देवता उनके नाम से थर-थर काँपते थे। तब स्त्री शक्तिरूपा माँ दुर्गा ने इनका वध किया था तथा देवताओं को उनके अत्याचार से बचाया था। शुंभ और निशुंभ की तरह की धूम्रलोचन, चंड और मुंड भी वरदान प्राप्त भयंकर असुर थे इनका भी वध माता दुर्गा ने किया था। इन असुरों का वध करके माता भगवती चामुंडा नाम से प्रसिद्ध हुई।

दुर्गापूजा 2022 की तिथियां

अब हम यह जान लेते है कि 2022 में दुर्गा पूजा कब है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, शारदीय नवरात्रि के समय में ही दुर्गा पूजा का उत्सव भी मनाया जाता है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि से दुर्गा पूजा का शुभारंभ होता है और दशमी के दिन समापन होता है। शारदीय नवरात्रि की षष्ठी से दुर्गा पूजा का आगाज होता है। दुर्गा पूजा 5 दिन षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी और दशमी तक मनाया जाता है। दुर्गा पूजा खासतौर पर बिहार, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा, त्रिपुरा, पूर्वी उत्तर प्रदेश समेत देश के अन्य भागों में मनाया जाता है। दुर्गा पूजा 2021 की प्रमुख तिथियां इस प्रकार है :-

29 सितम्बर:- मां दुर्गा को आमंत्रण एवं अधिवास, पंचमी तिथि

30 सितम्बर  :- नवपत्रिका पूजा, षष्ठी तिथि

1 अक्टूबर:- सप्तमी तिथि।

2 अक्टूबर:- सप्तमी तिथि।

3 अक्टूबर:-दुर्गा अष्टमी, कन्या पूजा, सन्धि पूजा तथा महानवमी।

4 अक्टूबर:- बंगाल महानवमी, दुर्गा बलिदान, नवमी हवन, विजयदशमी या दशहरा।

5 अक्टूबर:- दुर्गा विसर्जन, बंगाल विजयदशमी, सिन्दूर उत्सव।

सिंदूर उत्सव

जिस दिन मां दुर्गा को विदा किया जाता है यानी जिस दिन प्रतिमा विसर्जन के लिए ले जाया जाता है, उस दिन बंगाल में सिंदूर खेला या सिंदूर उत्सव होता है। यह विदाई का उत्सव होता है। इस दिन सुहागन महिलाएं पान के पत्ते से मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित करती हैं। उसके बाद एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और उत्सव मनाती हैं। एक दूसरे के सुहाग की लंबी आयु की शुभकामनाएं भी देती हैं। ऐसी भी मान्यता है कि मां दुर्गा 9 दिन तक मायके में रहने के बाद ससुराल जा रही हैं, इस अवसर पर सिंदूर उत्सव मनाया जाता है।

विदेशों में दुर्गा पूजा

भारतीय मूल के लोग जो विदेशों में रहते हैं वे दुर्गा पूजा को बहुत धूमधाम से मानते हैं।

पिछले कुछ समय में विदेशों में दुर्गापूजा का चलन काफी बढ़ा है।

वहां पर रहने वाले भारतीय मूर्तियाँ भारत से मंगाते हैं तथा विधिपूर्वक पूजन करते हैं।

अमेरिका, लंदन,स्पेन, फ्रांस , जर्मनी , इटली आदि देशों में भारतीय काफी संख्या में रहते हैं।

भारत में रहने वाले अपने परिजनों से या इंटरनेट के माध्यम से वे पता कर लेते हैं की दुर्गा पूजा कब है तथा निर्धारित तिथि पर धूमधाम से पूजा का आयोजन करते हैं।

हमारे पडोसी देश नेपाल में भी दुर्गापूजा बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता है।

सारांश

दुर्गा पूजा कब है पोस्ट के जरिये हमने दुर्गा पूजा के विभिन्न पहलुओं को देखा।

हिन्दुओं का सबसे बड़ा त्यौहार दुर्गा पूजा है।

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि से दुर्गा पूजा का शुभारंभ होता है।

दुर्गा पूजा का समापन दशमी को होता है।

दुर्गा विसर्जन के दिन बंगाल में सिंदूर उत्सव होता है।

भारत के कई भागों में नवरात्री मनाया जाता है।

नवरात्री में माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है।

माता दुर्गा के नौ रूप हैं :-

  • शैलपुत्री
  • ब्रह्मचारिणी
  • चंद्रघण्टा
  • कूष्माण्डा
  • स्कन्दमाता
  • कात्यायनी
  • कालरात्रि
  • महागौरी
  • सिद्धिदात्री

विदेशों में भी दुर्गा पूजा मनाया जाता है।

माता दुर्गा शक्तिदायिनी हैं।

माता अमोघ फलदायिनी हैं।

माँ को पूजने से ज्ञान तथा बुद्धि आती है।

माता की आराधना करने से रोग,दोष,भय दूर होते हैं।

माँ की कृपा से जीवन में कभी अशांति नहीं आती है।

माता की आराधना करने से बुरी शक्तिया कभी नहीं आती हैं।

माता का पूजन करने से अर्थ,धर्म,काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है।

माँ दुर्गा त्याग, तप, ब्रह्मचर्य,वैराग्य,सदाचार तथा संयम का प्रतीक है।

मुझे आशा है कि आपको नयी जानकारियां मिली होंगी।

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