झारखण्ड राज्य का इतिहास हिंदी में

झारखंड राज्य का इतिहास एवं संस्कृति के निर्माण में जनजातीय समाज का बहुमूल्य योगदान रहा है एवं प्राचीन काल से लेकर आज तक यहां की संस्कृति की गौरवशाली परंपरा रही है। आज के पोस्ट झारखंड राज्य का इतिहास हिंदी में के जरिए हम झारखंड के गौरवशाली इतिहास के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालने का प्रयास करेंगे एवं झारखंड की संस्कृति को समझेंगे। झारखंड राज्य की संस्कृति एवं सभ्यता के उद्भव तथा विकास से संबंधित ऐतिहासिक स्रोंतों के पुरातात्विक एवं साहित्यिक साक्ष्यों को भी जानेंगे। तो आइए देखते हैं हमारा पोस्ट झारखंड राज्य का इतिहास हिंदी में

प्राचीन इतिहास

झारखण्ड राज्य में निवास करने करने वाली सबसे पुरानी जनजाति असुर थी। छोटानागपुर प्रदेश प्राचीन काल में पूर्ण वनक्षेत्र था। घने जंगलों एवं पहाड़ियों से घिरा हुआ यह क्षेत्र हमेशा से आदिम जनजातिओं आकर्षित करता ,रहा है। असुर, खड़िया और बिरहोर यहाँ की प्राचीन जनजातियों में से है। इनके बाद कोरबा, मुंडा, उरॉव, हो आदि जनजातियां झारखण्ड में आकर बसी। आगे चलकर चेरो, खरवार, भूमिज तथा संताल भी झारखण्ड प्रदेश में आकर बसने लगी।

ऐसा माना जाता कि मुंडा जनजाति के लोग तिब्बत से आये थे। मुंडा और उरांव ही झारखण्ड प्रदेश की प्रमुख जनजातियां हैं। यह भी माना जाता है की मुंडा लोगों ने ही झारखण्ड की असुर संस्कृति को नष्ट किया था। पलामू क्षेत्र में खरवार, चेरो, कोल जनजातीय निवास कर रही थी तथा छोटानागपुर में भूमिज, संथाल, भुइया जनजातियां भी प्राचीन समय से निवास कर रही थी। पूर्व मध्यकाल में संताहल जनजाति की जनसँख्या हजारीबाग में अधिक थी, जबकि पलामू में चेरो-खरवार की जनसँख्या अधिक थी। ब्रिटिश काल में जब संथालों को संथाल परगना क्षेत्र में बसाया गया तब संथालो की जनसँख्या अधिक हो गयी।

झारखण्ड में बौद्ध- धर्म का आस्तित्व

प्राचीन ग्रंथों के अनुसार बौद्ध धर्म का झारखंड राज्य से गहरा संबंध रहा है । ‘झारखंड : इतिहास एवं संस्कृति’ नामक पुस्तक में गौतम बुद्ध की जन्मभूमि झारखंड को बताया है। इसका प्रमाण झारखण्ड राज्य के पलामू जिला में मूर्तिया गांव से प्राप्त सिंह-मस्तक की मूर्ति है। यह सिंह-मस्तक सांची में स्थित बौद्ध स्तूप पर उत्कीर्ण सिंह-मस्तक के जैसा ही है। बुद्धपुर में भी बौद्ध धर्म से संबंधित अनेक अवशेष पाए गए हैं। ऐसा अनुमान लगाया जाता है की ये अवशेष दसवीं सदी के हैं।

इसी प्रकार से झारखड के अनेक स्थानों में बौद्ध धर्म से सम्बंधित अवशेष प्राप्त हुए है

  • लाथोनटोंगरी पहाड़ी में बौद्ध खंडहर की खोज की गई है।
  • 1919 ई. में ए. शास्त्री ने बाग में काले चिकन पत्थर की बुद्ध मूर्ति की खोज की थी, जिसकी दोनों भुजाएं टूटी हुई हैं ।
  • इसी स्थल से एक अष्टभुजी देवी की प्रतिमा प्राप्त हुई है। प्रतिमा के ऊपर एक सिंह सवार है।
  • यहां से एक लेख भी प्राप्त हुआ है, जिस पर अर्द्धबंग्ला नागरी लिपि में लेख उत्कीर्ण हैं।
  • यह लेख बंगाल के शासक विजयसेन के देवपाड़ा प्रशस्ति लेख से समानता रखता है
  • खूंटी जिले के बेलवादाग ग्राम से बौद्ध बिहार का अवशेष प्राप्त हुआ है।
  • यहां से प्राप्त ईंट सांची के स्तूप में प्रयुक्त ईंट एवं मौर्यकालीन ईटों के समान है।
  • गुमला जिले कटुंगा गांव, पूर्वी सिंहभूम के भूला ग्राम से बुद्ध की प्रतिमा तथा पूर्वी सिंहभूम के ईचागढ़ से स्कूल की दीवार से महाश्री तारा की एक प्रतिमा प्राप्त हुई हैं।
  • 1984 ई. से यह प्रतिमा रांची संग्रहालय में सुरक्षित है।

अन्य स्थानों पर प्राप्त साक्ष्य

  • राजमहल क्षेत्र स्थित कांकजोल से बुद्ध की मूर्तियों की खोज कनिंघम द्वारा की गई है।
  • चतरा जिले के ईटखोरी में भद्रकाली मंदिर परिसर से बुद्ध की चार प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं। ये प्रतिमाएं सातवीं सदी की हैं तथा विभिन्न मुद्राओं में हैं।
  • ये मूर्तियां बालू पत्थर की हैं, जो हर्षवर्द्धन कालीन प्रतीत होती हैं ।
  • गौतम बुद्ध बोधगया में ज्ञान प्राप्ति (बोधत्व) के बाद 45 वर्षों तक जिन क्षेत्रों में ज्ञान का उपदेश देते रहे उनमें झारखंड क्षेत्र भी शामिल था।
  • कुषाण वंश के सर्वश्रेष्ठ शासक कनिष्क के सिक्के रांची के आस-पास के क्षेत्र से प्राप्त हुए हैं।
  • महायान बौद्ध धर्म को प्रश्रय देने वाले शासक कनिष्क ने लगभग संपूर्ण बिहार-झारखंड क्षेत्र पर शासन स्थापित कर लिया था।
  • कनिष्क ने इस क्षेत्र में नियुक्त अपने क्षत्रप वंशफर के सहयोग से यहां के स्थानीय निवासी पुलिन्दों को बौद्ध धर्म में शामिल किया था।
  • इस तरह कनिष्क के समय तक झारखंड क्षेत्र में बौद्ध धर्म फल-फूल रहा था, जब गुप्त वंश के समय विशेषकर समुद्रगुप्त के काल में वैष्णव धर्म का उद्भव एवं प्रभाव इस क्षेत्र पर पड़ने लगा तब बौद्ध धर्म का प्रभाव शिथिल होने लगा। गुप्त वंश के पतन के बाद जब इस क्षेत्र पर कट्टर शैव शासक बंगाल के शशांक का शासन स्थापित हुआ तब उसने पुनः बौद्ध धर्म के संरक्षक शासकों हर्षवर्द्धन एवं पाल वंश के समय झारखंड क्षेत्र पर बौद्ध धर्म के प्रभाव में वृद्धि हुई। पालवंश के शासकों गोपाल, धर्मपाल, देवपाल आदि ने बौद्धधर्म की शाखा वज्रयान को अधिक प्रश्रय दिया, जिसका प्रभाव भी झारखंड पर पड़ा।

झारखंड में जैन धर्म

पुरातन काल से ही झारखण्ड का मानभूम जैन सभ्यता और संस्कृति का केंद्र रहा है। जैन साहित्य के अनुसार जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए हैं। जिनमें 20 तीर्थंकरों अर्थात् जैनधर्म के सर्वोच्च गुरुओं को मोक्ष की प्राप्ति पारसनाथ की पहाड़ी पर हुई थी। इनमें जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का भी महाप्रयाण इसी पहाड़ी पर हुआ था जिसके कारण इस पहाड़ी को ‘पार्श्वनाथ’ के नाम से भी जाना जाता है। जो जैनियों का प्रमुख तीर्थस्थल है।

झारखण्ड राज्य के विभिन्न स्थानों पर जैन धर्म के आस्तित्व का प्रमाण मिलते है।

  • छोटानागपुर का मानभूम मैं जैन धर्म के सभ्यता एवं संस्कृति का केंद्र था।
  • पलामू जिले के हनुमांड गांव जैन धर्म के पूजास्थल के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
  • सिंहभूम के बेनूसागर में जैन मूर्तियां प्राप्त हुई हैं जो 7वीं शताब्दी की प्रतीत होती हैं।
  • दामोदर नदी एवं कसाई नदी के तट पर जैन धर्म से सम्बंधित अवशेष प्राप्त हुए हैं।
  • पारसनाथ पहाड़ जैनियों का प्रमुख तीर्थस्थल है।
  • इन स्थानों के अतिरिक्त पकबीरा, देवली, गोलमरा, पलमा आदि में अनेक जैन मंदिर एवं मूर्तियां स्थित थी।
  • बोड़ाम, बलरामपुर, कर्रा आदि स्थलों पर अनेक जैन मंदिरों का निर्माण करवाया गया था।

इतिहासकारों ने सिंहभूम क्षेत्र के प्राचीन निवासियों के लिए ‘सरक’ शब्द का प्रयोग किया है।

सरक शब्द संभवत: जैन धर्म में गृहस्थ जैनियों के लिए प्रयोग किए जाने वाले ‘श्रावक’ शब्द से बना है। हो जनजाति के लोगों ने इन श्रावकों को सिंहभूम से बाहर कर दिया था।

झारखण्ड में विभिन्न सम्प्रदायों एवं राजवंशों का उदय

समय के साथ झारखण्ड में विभिन्न सम्प्रदायों एवं राजवंशों का उदय हुआ तत्पश्चात यहां अंग्रेजों का शासन शुरू हो गया।  अनेक वीरों एवं शहीदों ने अपनी जान की बाजी लगाकर झारखण्ड प्रदेश को अंग्रेजों के चंगुल मुक्त किया। 

जिसके बारे में हमलोग विस्तार से अगले पोस्ट में जानेंगे।  

              आशा है आपको हमारा पोस्ट झारखण्ड राज्य का इतिहास हिंदी में पसंद आया होगा।  आगे भी ऐसे ही ज्ञानवर्धक एवं मनोरंजक पोस्ट पढ़ने के लिए क्लिक करते रहें www.seekhomujhse.in     धन्यवाद।।

 

 

 

 

 

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