मौलिक अधिकार किसे कहते हैं

मौलिक अधिकार किसे कहते हैं यह जानना हमारे लिए अतिआवश्यक है। आज के पोस्ट में हम मौलिक अधिकार के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।भारतीय संविधान ने लोगों को कुछ अधिकार दिए हैं जो जीवन जीने के लिए अति आवश्यक हैं । इन्हें हम मौलिक अधिकार या मूल अधिकार कहते हैं । संविधान ने हमें 6 प्रकार के मूल अधिकार या मौलिक अधिकार प्रदान किये हैं। 6 मौलिक अधिकार हैं :-

  •  समानता का अधिकार
  • स्वतंत्रता का अधिकार
  •  शोषण के विरुध अधिकार
  •  धार्मिक स्वतंत्रता क अधिकार
  •  सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बंधित अधिकार
  •  संवैधानिक उपचारों का अधिकार

मूल संविधान में 7 प्रकार के मौलिक अधिकार प्राप्त थे। बाद में 44 वें संविधान संशोधन,1978 के द्वारा इसे हटा दिया गया। इसके कारणों की चर्चा हम आगे करेंगे।

मौलिक अधिकारों की विशेषताएँ

विषय-सूचि

मौलिक अधिकारों को संविधान में कुछ विशेषताएँ प्रदान की गयी हैं। इस कारण यह अन्य कानूनों से अलग है। मौलिक अधिकारों की विशेषताओं पर एक नज़र डालते हैं :-

  • इन अधिकारों का हनन होने पर कोई व्यक्ति सीधे उच्च या उच्चतम न्यायालय जा सकता है। यानि उच्च या उच्चतम न्यायालय मौलिक अधिकारों का रक्षक है।
  • ऐसा कोई कानून नहीं बनाया जा सकता जिससे मौलिक अधिकार छीना जाता हो, पर संविधान संशोधन प्रक्रिया द्व्रारा इसमें बदलाव या संशोधन किये जा सकते हैं।
  • इन अधिकारों का उलंघन नहीं किया जा सकता।
  • समाज में समानता लाने के लिए व्यक्ति/नागरिक को मौलिक अधिकार दिए गए हैं।
  • किसी व्यक्ति या समाज के विकास के लिए ये अधिकार अति महत्वपूर्ण हैं।

भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों को अनुच्छेद 12 से 35 के बीच रखा गया हैं। मुख्य वर्गीकरण इस प्रकार है –

समानता का अधिकार -अनुच्छेद 14 से 18 तक

स्वतंत्रता का अधिकार– अनुच्छेद 19 से 22 तक

शोषण के विरुद्ध अधिकार -अनुच्छेद 23 से 24

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार -अनुच्छेद 25 से 28

सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बन्धी अधिकार -अनुच्छेद 29 से 30

संवैधानिक उपचारों का अधिकार -अनुच्छेद 32

आगे प्रत्येक अनुच्छेद को हम विस्तार से जानेंगे।

अनुच्छेद 12 (परिभाषा )

इस अनुच्छेद में ‘राज्य’ की परिभाषा को बताया गया है। इसके अनुसार राज्य के अंतर्गत आते हैं :-

  1. भारत की सरकार तथा संसद
  2. राज्य की सरकार और विधान-मंडल
  3. भारत या राज्य सरकार के नियंत्रण के अधीन सभी स्थानीय तथा अन्य प्राधिकारी

नोट:- बिजली बोर्ड, ONGC, एयरपोर्ट ऑथोरिटी, नगरनिगम, नगर परिषद् इत्यादि ‘राज्य’ के अंतर्गत आते हैं।

अनुच्छेद 13  (मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियां)

इस अनुच्छेद में यह कहा गया है कि संविधान लागू होने से पहले के जितने भी विधियाँ या कानून हैं वह उस मात्रा तक निरस्त होंगी जिस तक वे मौलिक अधिकारों से असंगत हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो वे सभी विधियाँ या कानून संविधान लागु होने के बाद भी रहेंगे जो मौलिक अधिकारों से असंगत नहीं हैं।

इसी अनुच्छेद में यह भी कहा गया है कि राज्य कोई भी ऐसा विधि या कानून नहीं बनाएगा जो मौलिक अधिकारों को छिनती हो।

इस अनुच्छेद के सम्बन्ध में यह ध्यान देने योग्य तथ्य है कि पूर्व की कोई विधि या कानून संविधान लागू होने के बाद निरस्त हो जाता है ।परंतु बाद में संविधान संशोधन होता है और पूर्व कानून को निरस्त करने वाले अनुच्छेद को ख़त्म कर दिया जाता है। इस अवस्था में पूर्व का विधि या कानून पुनः अस्तित्व में आ जाता है। साधारण शब्दों में कहें तो संविधान केवल पूर्व के विधि या कानून को ढक देता है । इस बात की समानता हम सूर्यग्रहण से कर सकते हैं। जिस प्रकार ग्रहण हटने के बाद सूर्य पुनः दृश्य हो जाता है ठीक उसी प्रकार संविधान के अनुच्छेद खत्म होने पर पूर्व की विधि या कानून अस्तित्व में आ जाता है।

समानता का अधिकार -अनुच्छेद 14 से 18 तक

अनुच्छेद 14 ( विधि के समक्ष समता)

इस अनुच्छेद के अनुसार भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। ध्यान देने योग्य तथ्य है कि इस अनुच्छेद में दो तरह की बातें कही गई है :-

  1. विधि के समक्ष समता (ब्रिटेन के संविधान से लिया गया है )
  2. विधियों का समान संरक्षण (अमेरिका के संविधान से लिया गया है )

साधारण शब्दों में समझें तो जहाँ एक तरफ यह सभी के लिए समान कानून की बात करता है वहीं दूसरी और यह भी कहता है कि अलग अलग परिस्थिति में सामान कानून लागु नहीं किये जा सकते हैं।

उदहारण स्वरूप :-

एक छोटे बच्चे और एक वयस्क व्यक्ति के लिए समान सजा नहीं हो सकती। मतलब जहाँ परिस्थितियाँ भिन्न हों वहाँ समान कानून नहीं लगाया जा सकता। परन्तु विधि का संरक्षण किया जायेगा और उसके अनुसार सजा दी जाएगी।

अनुच्छेद 15 (धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध)

इस अनुच्छेद के अनुसार भारतीय नागरिक को धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद नहीं किया जा सकता।

  1. किसी नागरिक को धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों,होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश से नहीं रोका जा सकता ।
  2. कुओं,तालाबों,स्नानघाटों, सड़कों और सार्वजनिक समागम के स्थानों के उपयोग से नहीं रोका जा सकता।
  3. यह अनुच्छेद राज्य को स्त्री तथा बच्चो के विकास के लिए विशेष उपबंध करने से नहीं रोकती है ।
  4. इस अनुच्छेद की कोई बात शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों या अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लिए विशेष उपबंध बनाने से नहीं रोकती है।

अनुच्छेद 16 (लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता)

इस अनुच्छेद के अनुसार राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समता होगी।

किसी पद के नियोजन के लिए केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्मस्थान या निवास के आधार पर न तो कोई अपात्र होगा न विभेद किया जायेगा।

इस अनुच्छेद की कोई भी बात पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिए उपबंध करने से निवारित नहीं करती।

राज्य के अनुसूचित जाति या जनजातियों के लिए नियुक्तियों या पदों में आरक्षण दिया जा सकता है।

अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का अंत )

अस्पृश्यता का किसी भी रूप में आचरण को निषिद्ध किया गया है।

अस्पृश्यता को लागु करना अपराध होगा और विधि के अनुसार दंडनीय होगा।

अनुच्छेद 18 (उपाधियों का अंत)

राज्य, सेना या विधा सम्बन्धी सम्मान के सिवाय और कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा।

भारत का कोई नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा ।

विदेशी राज्य से कोई भी भेंट राष्ट्रपति के सहमति के बिना प्राप्त नहीं करेगा।

स्वतंत्रता का अधिकार– अनुच्छेद 19 से 22 तक

अनुच्छेद 19 (वाक्–स्वातंत्र्य आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण)

सभी नागरिकों को –

क) अभिव्यक्ति की आज़ादी

ख) शांतिपूर्ण सम्मलेन करने की आज़ादी

ग) संगठन या संघ बनाने की आज़ादी

घ) भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र घूमने की आज़ादी

ङ) भारत के राज्यक्षेत्र में किसी भी भाग में निवास करने की आज़ादी

च) **************************** (40 वें संविधान संसोधन 1978 द्वारा लोप )

छ) व्यापार या कारोबार करने का अधिकार

उपर्युक्त उपखंडो में दिए गए अधिकारों का दुरूपयोग राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार,या सदाचार के हितों में अथवा न्यायलय अवमानना, मानहानि या अपराध-उद्दीपन के सम्बन्ध में नहीं किया जा सकता।

अनुच्छेद 20 (अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण)

कोई व्यक्ति किसी अपराध के लिए तब तक दोषसिद्ध नहीं ठहराया जायेगा , जब तक कि उसने ऐसा कोई कार्य करने के समय किसी कानून का उल्लंघन न किया हो।

किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक बार से अधिक दंडित नहीं किया जायेगा।

किसी अपराध के लिए अभियुक्त किसी व्यक्ति को स्वयं अपने विरूद्ध साक्षी के लिए बाध्य नहीं किया जायेगा।

अनुच्छेद 21 (प्राण और दैहिक स्वतन्त्रता का संरक्षण)

किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जयेगा, अन्यथा नहीं।

अनुच्छेद 21क (शिक्षा का अधिकार )

6 से 14 वर्ष आयु तक के सभी बालकों को शिक्षा पाने का अधिकार है।

अनुच्छेद 22 (कुछ दशाओं में गिरफ़्तारी और निरोध में संरक्षण)

अगर किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है तो उसके गिरफ़्तारी के कारण को बताना अनिवार्य होगा।

वह अपने इच्छाअनुसार वकील रख सकता है और कानूनी परामर्श ले सकता है।

जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है उसे 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना अनिवार्य होगा।

ध्यान देने योग्य तथ्य है कि अगर कोई व्यक्ति शत्रु हो या अन्यदेशी हो तो उपर्युक्त नियम लागु नहीं होते हैं।

निवारक निरोध का उपबंध करने वाली किसी कानून के तहत गिरफ्तार किया जाता है तो उपर्युक्त नियम लागु नहीं होंगे।

शोषण के विरुद्ध अधिकार -अनुच्छेद 23 से 24

अनुच्छेद 23 (मानव के दुर्व्यापार और बलात्श्रम का प्रतिषेध)

मानव तस्करी,बेगारी तथा बल पूर्वक श्रम को इस खंड के द्वारा प्रतिषेध किया गया है। ऐसा करने पर विधिसम्मत दंड का प्रावधान है।

ध्यान रहे कि इस खंड की कोई भी बात राज्य को सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए अनिवार्य सेवा अधिरोपित करने से निवारित नहीं करती।

अनुच्छेद 24 (कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध)

चौदह वर्ष से काम उम्र के किसी बालक को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जायेगा।

14 वर्ष से कम उम्र के बालक को परिसंकटमय नियोजन में नहीं लगाया जायेगा।

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार -अनुच्छेद 25 से 28

अनुच्छेद 25 (अंतः करण और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता)

सभी व्यक्तियों को अंतः करण की स्वतंत्रता तथा किसी भी धर्म को अबाध रूप से मानने की स्वतंत्रता होगी।

लोक व्यवस्था, सदाचार, और स्वास्थ्य को हानि पहुँचाये बिना धार्मिक स्वतंत्रता दी जाएगी।

अनुच्छेद 26 (धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता)

लोक व्यवस्था, सदाचार, और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए प्रत्येक धार्मिक समुदाय को संस्थाओं की स्थापना करने, धर्म विषयक कार्यों का प्रबंध करने, संपत्ति के अर्जन तथा स्वामित्व का और ऐसी संपत्ति का विधि के अनुसार प्रशासन करने का अधिकार होगा।

अनुच्छेद 27 (किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय के बारे में स्वतंत्रता)

किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक संप्रदाय की अभिवृद्धि में व्यय की जाने वाली राशि पर करों का संदाय करने के लिए बाध्य नहीं किया जायेगा।

अनुच्छेद 28 (कुछ शिक्षा संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता)

राज्य-निधि से पूर्णतः पोषित किसी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।

राज्य से मान्यता प्राप्त या राज्य निधि से सहायता प्राप्त किसी संस्था में उपस्थित होने वाले किसी व्यक्ति को ऐसी संस्था में होने वाले धार्मिक शिक्षा में भाग लेने के लिए बाध्य नहीं किया जायेगा।

सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बन्धी अधिकार -अनुच्छेद 29 से 30

अनुच्छेद 29 (अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण)

भारत के नागरिकों को राज्यक्षेत्र में जिनकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाये रखने का अधिकार होगा ।

राज्य निधि से चलने वाली शिक्षण संस्थानों में किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा के आधार पर प्रवेश से वंचित नहीं किया जायेगा।

अनुच्छेद 30 (शिक्षा संस्थानों को स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार )

धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रूचि की शिक्षा संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।

शिक्षा संस्थाओं को सहायता देने में राज्य किसी शिक्षा संस्था के विरूद्ध इस आधार पर विभेद नहीं करेगा कि वह धर्म या भाषा प् आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंध में है ।

अनुच्छेद 31 (संपत्ति का अनिवार्य अर्जन)

*************************** संविधान के 40 वें संशोधन द्वारा निरसित

ध्यान देने योग्य बात यह है कि संपत्ति के अधिकार को संविधान में अनुच्छेद 300 (क) में स्थान दिया गया है।

स्पष्ट है कि संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं बल्कि कानूनी अधिकार है।

अनुच्छेद 31 (क) (संपदाओं आदि के अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधियों की व्याकृति)

इस अनुच्छेद को संविधान संशोधन द्वारा भूमि सुधारों के लिए जोड़ा गया।

भूमि सुधार के लिए अनुच्छेद 14 और 19 को दरकिनार करना संभव।

भूमि सुधारों के इतर भी भूमि अधिग्रहण संभव।

इस अनुच्छेद के अनुसार भूमि सुधारों के अंतर्गत सम्पदा भी शामिल।

अनुच्छेद 31 (ख) (कुछ अधिनियमों और विनियमों का विधिमान्यकरण)

पहले संविधान संशोधन द्वारा भूमि सुधारों के लिए जोड़ा गया।

इसके माध्यम से संविधान में नवमी अनुसूची शामिल हो गयी।

इसमें प्रावधान किया गया है की नवमी अनुसूची में शामिल अधिनियम, नियम तथा विनियम न्यायिक पुनर्विलोकन से परे होंगे।

नवमी अनुसूची बनाने का लक्ष्य था कि भूमि सुधार अधिनियमों को न्यायिक पुनर्विलोकन से सुरक्षा मिल सके।

अनुच्छेद 31(ग) (कुछ निदेशक तत्वों को प्रभावी करने वाली विधियों की व्याकृति)

25वें संविधान संशोधन द्वारा भूमि सुधारों के लिए जोड़ा गया।

यदि कोई विधि संविधान के अनुच्छेद 39(ख) या 39(ग) में दिए गए निति-निदेशक तत्वों को उपलब्ध करने के लिए बनायीं जाती है तो उसे इस आधार पर शून्य घोषित नहीं किया जा सकेगा कि वह संविधान के अनुच्छेद 14,19 या 31 का उल्लंघन करती है।

42वें संविधान संशोधन के माध्यम से भाग 4 में उल्लिखित किसी भी निति निदेशक तत्व को अनुच्छेद 14,19 या 31 पर वरीयता प्रदान की गई है।

अनुच्छेद 31 (घ) (राष्ट्र विरोधी क्रियाकलाप के सम्बन्ध में विधियों की व्यावृत्ति)

************************** 43वें संविधान संशोधन 1977 की धारा 2 द्वारा निरसित

सांविधानिक उपचारों का अधिकार

अनुच्छेद 32 (इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए उपचार)

इस अनुच्छेद के अनुसार मौलिक अधिकारों का हनन होने पर सीधे उच्चतम न्यायालय जा सकते हैं।

इस भाग में प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए उच्चतम न्यायालय पाँच तरह के रिट जारी कर सकता है:-

  • बंदी प्रत्यक्षीकरण ( habeas corpus)- गिरफ़्तारी के 24 घण्टे के अन्दर सशरीर प्रस्तुत करना, व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए अति आवश्यक
  • परमादेश (mandamus)- सार्वजनिक सेवा में लगे कर्मचारी अगर अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं करते तो परमादेश दिया जा सकता है
  • प्रतिषेद (prohibition)- कोर्ट अपने निचली कोर्ट पर प्रतिषेद लगा सकती है।
  • अधिकार पृष्छा (quo warranto)- कर्मचारी के पद की संवैधानिक जाँच हो सकती है ।
  • उत्प्रेषण (certiorari)-कोर्ट अपने से निचली कोर्ट के आदेश को रोकने के लिए उत्प्रेषण लगा सकती है।

अनुच्छेद 33 (इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों का बलों आदि को लागू होने में, उपांतरण करने की संसद की शक्ति)

इस अनुच्छेद के द्वारा सेना, गुप्तचर, राजदूत, मीडिया के मौलिक अधिकारों को सीमित किया गया है।

मौलिक अधिकारों को सीमित करने का उद्देश्य उनके कर्तव्यों का उचित पालन तथा उनमें अनुशासन बना रहना सुनिश्चित करना है।

अनुच्छेद 34 (जब किसी क्षेत्र में सेना विधि प्रवृत्त है तब इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों पर निर्बन्‍धन)

सैन्य कानून लागू होने पर मौलिक अधिकार सीमित हो जाते हैं।

अनुच्छेद 35 (इस भाग के उपबंधों को प्रभावी करने का विधान)

संसद मौलिक अधिकारों को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए कानून बना सकती है।

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