रक्षाबंधन क्यों मनाते हैं ?रक्षाबंधन का इतिहास क्या है ?

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रक्षाबंधन क्यों मनाते हैं ? रक्षाबंधन हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार है। यह त्योहार भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बाँधती हैं और अपने भाई की लंबी आयु की कामना करती हैं। भाई अपनी बहन को उसकी रक्षा का वचन देता है। रक्षाबंधन श्रावण मास के पूर्णिमा को मनाया जाता है। रक्षाबंधन पर बहनें भाइयों की दाहिनी कलाई में राखी बांधती हैं, उनका तिलक करती हैं और उनसे अपनी रक्षा का संकल्प लेती हैं। हालांकि रक्षाबंधन की व्यापकता इससे भी कहीं ज्यादा है।

रक्षाबंधन के त्यौहार को सफल बनाने में पोस्टऑफिस का भी अहम योगदान है। वर्षों से पोस्टऑफिस बहनों की राखियाँ भाइयों तक पहुँचाने का कार्य करता आ रहा है। इस कारण आम जनमानस का भावनात्मक जुड़ाव पोस्ट ऑफिस के साथ होता है। भारत सरकार के डाक विभाग द्वारा इस अवसर पर दस रुपए वाले आकर्षक लिफाफों की बिक्री की जाती हैं। लिफाफे की कीमत 5 रुपए और 5 रुपए डाक का शुल्क। इसमें राखी के त्योेहार पर बहनें, भाई को मात्र पाँच रुपये में एक साथ तीन-चार राखियाँ तक भेज सकती हैं। डाक विभाग की ओर से बहनों को दिये इस तोहफे के तहत 50 ग्राम वजन तक राखी का लिफाफा मात्र पाँच रुपये में भेजा जा सकता है जबकि सामान्य 20 ग्राम के लिफाफे में एक ही राखी भेजी जा सकती है।

यह सुविधा रक्षाबन्धन तक ही उपलब्ध रहती है। रक्षाबन्धन के अवसर पर बरसात के मौसम का ध्यान रखते हुए डाक-तार विभाग ने 2007 से बारिश से ख़राब न होने वाले वाटरप्रूफ लिफाफे भी उपलब्ध कराये हैं। ये लिफाफे अन्य लिफाफों से भिन्न हैं। इसका आकार और डिजाइन भी अलग है जिसके कारण राखी इसमें ज्यादा सुरक्षित रहती है। रक्षाबंधन क्यों मनाते हैं ? विस्तृत जानकारी इस पोस्ट में प्राप्त करें।

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रक्षाबंधन का इतिहास क्या है ?

मेवाड़ की रानी कर्णावती की कथा

सन् 1535 में जब मेवाड़ की रानी कर्णावती पर बहादुर शाह ने आक्रमण कर दिया, तो उसने अपने राज्य की रक्षा के लिए मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेजकर मदद की गुहार की थी। तब हुमायूँ ने मुसलमान होते हुए भी मेवाड़ की रानी कर्णावती की मदद की थी। तभी से राखी बाँधने की परंपरा चली आ रही है।

महाभारत की कथा

कृष्ण और द्रौपदी की महाभारत की कहानी प्रसिद्ध है, जिसमे युद्ध के दौरान श्री कृष्ण की उंगली घायल हो गई थी, श्री कृष्ण की घायल उंगली को द्रौपदी ने अपनी साड़ी मे से एक टुकड़ा बाँध दिया था, और इस उपकार के बदले श्री कृष्ण ने द्रौपदी को किसी भी संकट मे द्रौपदी की सहायता करने का वचन दिया था। इसके बाद श्री कृष्ण ने द्रौपदी चीरहरण के दौरान उनकी रक्षा की थी। तभी से भाई की कलाई में बहन द्वारा राखी बाँधने की परंपरा चली आ रही है।

इस बात का उल्लेख महाभारत में है कि जब ज्येष्ठ पाण्डव युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूँ तब भगवान कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिये राखी का त्योेेहार मनाने की सलाह दी थी। उनका कहना था कि राखी के इस रेशमी धागे में वह शक्ति है जिससे आप हर विपत्ति से मुक्ति पा सकते हैं। इस समय द्रौपदी द्वारा कृष्ण को तथा कुन्ती द्वारा अभिमन्यु को राखी बाँधने के कई उल्लेख मिलते हैं।

राजा बलि की कथा

दानवेन्द्र राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भीक्षा माँगने पहुँचे। गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकनाचूर कर देने के कारण यह त्योहार बलेव नाम से भी प्रसिद्ध है।

कहते हैं एक बार बाली रसातल में चला गया तब बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति भगवान बलि को अपने साथ ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। विष्णु पुराण के एक प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण की पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिये फिर से प्राप्त किया था। हयग्रीव को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है।

जैन धर्म में राखी

जैन धर्म मे रक्षा बंधन का दिन बहुत शुभ माना जाता है इस दिन एक मुनि ने 700 मुनियों के प्राण बचाए थे। इस वजह से जैन धर्म से संबंध रखने वाले लोग इस दिवस पर हाथ में सूत का डोर बांधते हैं।

सिकंदर की कथा

एक अन्य प्रसंगानुसार सिकन्दर की पत्नी ने अपने पति के हिन्दू शत्रु पुरू (पोरस) को राखी बाँधकर अपना मुँहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकन्दर को न मारने का वचन लिया। पुरू ने युद्ध के दौरान हाथ में बँधी राखी और अपनी बहन को दिये हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकन्दर को जीवन-दान दिया।

रक्षाबंधन त्यौहार की महत्ता

रक्षाबंधन प्रेम का त्यौहार है। भाई और बहन के बीच के प्रेम को यह त्यौहार दर्शाता है। कच्चे धागे को जब बहनें अपने भाई के कलाई पर बाँधती है तो भाई के प्रति उनका प्रेम छलक कर बाहर आता है। भाई उपहार देकर अपने बहन के प्रति उनके प्रेम को प्रदर्शित करता है। हमें गर्व है कि आज बहनें इतनी आत्मनिर्भर है कि वो अपनी रक्षा खुद कर सकती है, परन्तु परंपरा के अनुसार इस पर्व में भाई अपने बहन की रक्षा का वचन देता है। इस त्यौहार का इंतजार भाई-बहन साल भर बेसब्री से करते हैं।

लड़ाईयां भाई-बहन के बीच जरूर होती है यह उनके बीच की निश्छल प्रेम की निशानी है। वो कहते है ना अगर रिश्तों में लड़ाईयां ना हो तो समझ लो कि रिश्ता दिल से नहीं दिमाग से निभाया जा रहा है। दिमाग से निभाये जाने वाले रिश्ते ज्यादा दिन तक टिकते नहीं है।

कुछ पंक्तियाँ भाई-बहन के प्यार के लिए :-

रक्षा-बन्धन का त्यौहार है,
हर तरफ खुशियों की बौछार है, रक्षा के पवित्र बंधन को सदा निभाइये,
अनमोल है बहन, सदा स्नेह लुटाइये।

भाई बहन का त्योहार है,
सावन में फुआर है,
मीठी सी तकरार है,
यही राखी का त्यौहार है।

अपनी खुशियों को भाईयों पर वार देती है,
बहने तो ताउम्र बस स्नेह और प्यार देती है!
लड़ता है भाई बेशक़ वजह बेवजह बहन से,
पर बहन से नोक-झोंक ही उसे करार देती है!

राखी का त्यौहार है
राखी बंधवाने को भाई तैयार है,
भाई बोला बहना मेरी अब तो राखी बांध दो,
बहना बोली “कलाई पीछे करो, पहले उपहार दो”

माथे पर टिका, कलाई पर राखी,
मुंह पर मुस्कान, दिल में प्यार,
रक्षा के वचन संग बहन को उपहार,
यही है रक्षाबंधन का त्यौहार।

रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त

इस वर्ष रक्षाबंधन सावन महीने के पूर्णिमा तिथि यानि 3 अगस्त, सोमवार को मनाया जाएगा। इस बार रक्षाबंधन पर भद्रा का साया ज्यादा देर के लिए नहीं रहेगा। 3 अगस्त को सुबह 9 बजकर 29 मिनट तक भद्रा रहेगी। भद्रा समाप्त होने के बाद पूरे दिन राखी बांधी जा सकती है।

लेख का सारांश

रक्षाबंधन क्यों मनाते हैं ?रक्षाबंधन का इतिहास क्या है ? पोस्ट के जरिये रक्षाबंधन के बारे में पूर्ण जानकारी देने की कोशिश की गयी है। रक्षाबंधन के पीछे के इतिहास और महत्व के बारे में भी इस पोस्ट में बताया गया है। मुझे पूरा विश्वास है की आपलोगों को यह पोस्ट पसंद आया होगा। इस पोस्ट के लिए कमेंट अवश्य करें ताकि हमें और भी अच्छे पोस्ट लिखने की प्रेरणा मिल सके। इस पोस्ट को अपने स्वजनों के बीच अवश्य शेयर करें।