नई शिक्षा नीति 2020

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केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा नई राष्ट्रीय शिक्षा की घोषणा की गयी। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्री श्री प्रकाश जावडेकर और डॉ रमेश पोखरियाल निशंक ने औपचारिक रूप से इसकी घोषणा की। देश में 34 वर्षों के बाद शिक्षा नीति में बदलाव किया जा रहा है। केन्द्र सरकार का मानना है कि शिक्षा के क्षेत्र में बड़े बदलाव की जरुरत है ताकि भारत दुनियाँ में विश्वगुरु बन सके। इसके लिए सभी को अच्छी quality की शिक्षा दिये जाने की जरूरत है ताकि एक प्रगतिशील और गतिमान समाज बनाया जा सके। मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदल कर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। इसका मतलब है कि रमेश पोखरियाल निशंक अब देश के शिक्षा मंत्री कहलाएंगे।

नई शिक्षा नीति 2020 से स्कूली शिक्षा में होने वाले सुधार

  • 3 से 6 वर्ष के बच्चों के लिए अर्ली चाइल्डहुड केयर एवं एजुकेशन के लिए NCERT द्वारा कैरिकुलम तैयार किया जायेगा तथा 6 से 9 वर्ष के लिए FOUNDATIONAL लिटरेसी एवं न्यूमेरेसी ( बुनियादी शिक्षा ) पर नेशनल मिशन शुरू किया जायेगा।
  • पढाई की रूप रेखा 5+3+3+4 के आधार पर तैयार की जाएगी।
  • नई प्रणाली में प्री स्कूलिंग के साथ 12 साल की स्कूली शिक्षा और तीन साल की आंगनवाड़ी होगीअब स्कूल में पहले 5 वर्ष प्री-प्राइमरी तथा पहली और दूसरी कक्षा के लिए होगा।
  • अगले तीन साल का स्टेज कक्षा 3 से 5 तक का होगा।
  • इसके बाद 3 साल का मिडिल स्टेज आएगा यानी कक्षा 6 से 8 तक। अब छठी से बच्चे को प्रोफेशनल और स्किल की शिक्षा दी जाएगी।
  • चौथा स्टेज कक्षा 9 से 12वीं तक का होगा।
  • कक्षा 6 के बाद से ही वोकेशनल कोर्स को जोड़ा जायेगा।
  • बच्चो के रिपोर्ट कार्ड में लाइफ स्किल्स को जोड़ा जायेगा।
  • वर्ष 2030 तक हर बच्चे के लिए शिक्षा सुनिश्चित की जाएगी।
  • शिक्षा के प्रारूप को इस ढंग से तैयार किया गया है कि विद्यालयी शिक्षा के बाद हर बच्चे में लाइफ स्किल होगा जिससे बच्चे आत्मनिर्भर बन पाएंगे ।
  • नई शिक्षा नीति में पांचवीं तक और जहां तक संभव हो सके आठवीं तक मातृभाषा में ही शिक्षा उपलब्ध कराई जाएगी। 
  • अभी स्कूल से दूर रह रहे दो करोड़ बच्चों को दोबारा मुख्य धारा में लाया जाएगा। इसके लिए स्कूल के बुनियादी ढांचे का विकास और नवीन शिक्षा केंद्रों की स्थापना की जाएगी।
  • सामाजिक और आर्थिक नज़रिए से वंचित समूहों (SEDG) की शिक्षा पर विशेष ज़ोर दिया जाएगा।
  • शिक्षकों के लिए राष्ट्रीय प्रोफ़ेशनल मानक (एनपीएसटी) राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद द्वारा वर्ष 2022 तक विकसित किया जाएगा, जिसके लिए एनसीईआरटी, एससीईआरटी, शिक्षकों और सभी स्तरों एवं क्षेत्रों के विशेषज्ञ संगठनों के साथ परामर्श किया जाएगा।
  • नई शिक्षा नीति में छात्रों को ये आज़ादी भी होगी कि अगर वो कोई कोर्स बीच में छोड़कर दूसरे कोर्स में दाख़िला लेना चाहें तो वो पहले कोर्स से एक ख़ास निश्चित समय तक ब्रेक ले सकते हैं और दूसरा कोर्स ज्वाइन कर सकते हैं।
  • उच्च शिक्षा में कई बदलाव किए गए हैं. जो छात्र रिसर्च करना चाहते हैं उनके लिए चार साल का डिग्री प्रोग्राम होगा। जो लोग नौकरी में जाना चाहते हैं वो तीन साल का ही डिग्री प्रोग्राम करेंगे। लेकिन जो रिसर्च में जाना चाहते हैं वो एक साल के एमए (MA) के साथ चार साल के डिग्री प्रोग्राम के बाद सीधे पीएचडी (PhD) कर सकते हैं. उन्हें एमफ़िल (M.Phil) की ज़रूरत नहीं होगी।
  • दसवीं एवं 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं में बड़े बदलाव किए जाएंगे। बोर्ड परीक्षाओं के महत्व को कम किया जाएगा। कई अहम सुझाव हैं। जैसे साल में दो बार परीक्षाएं कराना, दो हिस्सों वस्तुनिष्ठ (ऑब्जेक्टिव) और व्याख्त्मक श्रेणियों में इन्हें विभाजित करना आदि।
  • ई-पाठ्यक्रम क्षेत्रीय भाषाओं में विकसित किए जाएंगे. वर्चुअल लैब विकसित की जा रही है और एक राष्ट्रीय शैक्षिक टेक्नोलॉजी फ़ोरम (NETF) बनाया जा रहा है।
  • उच्च शिक्षा के लिए एक सिंगल रेगुलेटर रहेगा। लॉ और मेडिकल शिक्ष को छोड़कर समस्त उच्च शिक्षा के लिए एक एकल अति महत्वपूर्ण व्यापक निकाय के रूप में भारत उच्च शिक्षा आयोग (एचईसीआई) का गठन किया जाएगा।
  • बच्चों की रिपोर्ट कार्ड में बदलाव होगा। उनका तीन स्तर पर आकलन किया जाएगा। एक स्वयं छात्र करेगा, दूसरा सहपाठी और तीसरा उसका शिक्षक। नेशनल एसेसमेंट सेंटर बनाया जाएगा जो बच्चों के सीखने की क्षमता का समय-समय पर परीक्षण करेगा।
नई शिक्षा नीति 2020

शिक्षा के फोर्मेट में बदलाव

नई शिक्षा नीति 2020 में शिक्षा के फोर्मेट में बदलाव किया गया है। जहाँ पुरानी शिक्षा पद्धति में दो बार बोर्ड परीक्षा (10th और 12th ) होती थी वहीँ नई नीति में इसमें बदलाव किया गया है। नई नीति में  बोर्ड परीक्षाओं के महत्व को कम किया जाएगा। बोर्ड परीक्षा में छात्रों पर ज्यादा अंक लाने के बजाय उनके ज्ञान को बढ़ाने में ज्यादा जोर दिया जाएगा। इससे छात्रों में बोर्ड परीक्षा का दबाब कम हो जाएगा तथा छात्र अपने ज्ञान को निखारने में ज्यादा ध्यान दे पाएंगे। स्कूल में प्री-प्राइमरी लेबल पर स्पेशल सिलेबस तैयार किया गया है ताकि बच्चो की नींव मजबूत हो सके। आंगनबाड़ी का कायाकल्प हो जायेगा। कक्षा तीन तक के छात्रों को मूलभूत साक्षरता तथा अंकज्ञान सुनिश्चित किया जाएगा। मिडिल कक्षाओं की पढ़ाई पूरी तरह बदल जाएगी। कक्षा छह से आठ के बीच विषयों की पढ़ाई होगी। नए सुधारों में टेक्नोलॉजी और ऑनलाइन एजुकेशन पर जोर दिया गया है। कंप्यूटर, लैपटॉप और फोन इत्यादि के जरिए विभिन्न ऐप का इस्तेमाल करके शिक्षण को रोचक बनाने की बात कही गई है।

8 वीं कक्षा के बाद अगले चार साल जब छात्र वोकेशनल कोर्स में स्किल ओरिएंटेड पढाई करेगा तो जहाँ एक बड़ा छात्र वर्ग उच्च शिक्षा के लिए अग्रसर होगा वहीँ शेष छात्र स्किल विकसित कर उद्यमिता और सर्विस सेक्टर में काम करेगा।

उच्च शिक्षा में बदलाव

उच्च शिक्षा में अब मल्टीप्ल एंट्री और मल्टीप्ल एग्जिट का विकल्प दिया जाएगा। मतलब अगर किसी कारणवश किसी छात्र की पढाई बीच में ही छुट जाती है तो वह एग्जिट कर सकता है , उसे उस समय तक का प्रमाणपत्र दिया जायेगा। उदाहरण के तौर पर अगर कोई छात्र इंजीनियरिंग की चार वर्ष की पढाई बीच में ही छोड़ देता है तो मल्टीपल एंट्री और एग्ज़िट सिस्टम में एक साल के बाद सर्टिफ़िकेट, दो साल के बाद डिप्लोमा और तीन-चार साल के बाद डिग्री मिल जाएगी. इससे उन छात्रों को बहुत फ़ायदा होगा जिनकी पढ़ाई बीच में किसी वजह से छूट जाती है।

रिसर्च में बदलाव

जो छात्र रिसर्च में जाना चाहते हैं उनके लिए चार साल का डिग्री प्रोग्राम होगा वो एक साल के MA के साथ चार साल के डिग्री प्रोग्राम के बाद PhD कर सकते है। इसके लिए M.Phil की जरुरत नहीं होगी। जो लोग नौकरी में जाना चाहते हैं वो तीन साल का ही डिग्री प्रोग्राम करेंगे।

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गुणवत्तापूर्ण शिक्षा

नई शिक्षा नीति के मुताबिक अब 3 साल से 18 साल के बच्चों की शिक्षा को शिक्षा के अधिकार कानून 2009 के अन्दर लाया जाएगा। आने वाले समय में शिक्षक और छात्रों का अनुपात 1:30 होगा।उच्च शिक्षा में 2035 तक 50 फ़ीसद GER (Gross Enrolment Ratio) पहुंचाने का लक्ष्य है। फ़िलहाल 2018 के आँकड़ों के अनुसार GER 26.3 प्रतिशत है। उच्च शिक्षा में 3.5 करोड़ नई सीटें जोड़ी जाएंगी।

उच्च शिक्षा के लिए एक सिंगल रेगुलेटर रहेगा। लॉ और मेडिकल शिक्ष को छोड़कर समस्त उच्च शिक्षा के लिए एक एकल अति महत्वपूर्ण व्यापक निकाय के रूप में भारत उच्च शिक्षा आयोग (एचईसीआई) का गठन किया जाएगा।

एचईसीआई के चार स्वतंत्र वर्टिकल होंगे-

  1. विनियमन के लिए राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा नियामकीय परिषद (एनएचईआरसी)
  2. मानक निर्धारण के लिए सामान्य शिक्षा परिषद (जीईसी)
  3. वित पोषण के लिए उच्चतर शिक्षा अनुदान परिषद (एचईजीसी)
  4. प्रत्यायन के लिए राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद (एनएसी)

भारतीय भाषाओं का प्रचार

  • भारतीय भाषाओं में भाषा, साहित्य, वैज्ञानिक शब्दावली पर ध्यान दिया जायेगा।
  • प्रारंभिक शिक्षा में स्थानीय भाषाओं एवं राष्ट्रभाषा के इस्तेमाल पर जोर दिया जायेगा।
  • शास्त्रीय भाषाओं और साहित्य को बढ़ावा देने के लिए मौजूदा राष्ट्रीय संस्थानों को मजबूत किया जायेगा।
  • भाषा अध्यापकों की भर्ती की जायेगी।
  • पाली, फारसी और प्राकृत के लिए राष्ट्रीय संस्थान स्थापित किया जायेगा।
  • वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दों को स्थानीय तथा राष्ट्रीय भाषा में परिवर्तित किया जायेगा।
  • भारतीय भाषाओं के शोध पर जोर दिया जायेगा।
  • स्कूली और उच्च शिक्षा में छात्रों के लिये संस्कृत और अन्य प्राचीन भारतीय भाषाओं का विकल्प उपलब्ध होगा परंतु किसी भी छात्र पर भाषा के चुनाव की कोई बाध्यता नहीं होगी।

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